जानिए सभी जरूरी विटामिन A, B, C, D, E और K के फायदे, कमी के लक्षण और प्राकृतिक स्रोत। सेहतमंद जीवन के लिए यह पूरी गाइड जरूर पढ़ें।
विटामिन की खोज किसने की?
हापकिंस के द्वारा 1912 ई० में विटामिन की खोज हुई, लेकिन फंक ने इसका नामकरण किया था, इसीलिए फंक को इसका खोजकर्ता माना जाता है। 1929 ई० में विटामिन की खोज के लिए होपकिंस को नोबेल पुरस्कार दिया गया।
इसमें उन्होंने बताया जो भी रोग हमारे शरीर के अन्दर होता है, वह किसी न किसी विटामिन की कमी से होता है।
विटामिन क्या है, परिभाषा जानिए :
विटामिन भोजन के ही अवयव हैं, जिनकी सभी जीव जंतुओं को अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है। रासायनिक रूप से ये कार्बनिक यौगिक होते हैं। विटामिन उस यौगिक को कहा जाता हैै, जो शरीर द्वारा पर्याप्त मात्रा में स्वयं उत्पन्न नहीं किया जा सकता बल्कि भोजन के रूप में लेना आवश्यक होता है।
ये अन्य पदार्थो की अपेक्षा कुछ सरल कार्बनिक यौगिक होते हैं। जन्तुओं को ज्यादा से ज्यादा विटामिन भोजन से ही प्राप्त होते हैं, क्योंकि इनका संश्लेषण पौधे ही करते हैं। पादपों और जन्तुओं में विटामिनों की आवश्यकता लगभग बराबर होती है ।
विटामिन के प्रकार :
लगभग 20 प्रकार के विटामिनों का जीवों में अब तक पता चला है। इनमें से निम्नलिखित का हमारे भोजन में होना आवश्यक होता है।
इन्हें दो प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जाता है—
- जल में घुलनशील विटामिन।
- वसा में घुलनशील विटामिन।
जल में घुलनशील विटामिन :-
- विटामिन B
- विटामिन C
विटामिन "B-कॉम्लेक्स":-
सन् 1912 ई० में विटामिन को फुन्क ने चावल की छीलन से पृथक् किया,जो जल में घुलनशील और नाइट्रोजनयुक्त था। उन्होंने ही इसे विटामिन "बी" (Vitamin "B")का नाम दिया। बाद में लगभग दस अन्य ऐसे ही विटामिनों की खोज हुई। और इन सबको “बी-कॉम्प्लेक्स (B-complex)" का सामूहिक नाम दे दिया गया।
प्रमुख "बी-कॉम्लेक्स" विटामिन निम्नलिखित होते हैं-
विटामिन B1:
विटामिन B1 का रासायनिक नाम 'थायमीन' है
सबसे पहले फुन्क ने सन् 1912 में विटामिन बी1 को चावल की
छीलन से तैयार किया था,
विटामिन B1 के स्रोत
हमें यह अनाज के छिलकों, दूध, हरी सब्जियों,यीस्ट, मांस, मेवा, सोयाबीन, मछली, अण्डों आदि से मिलता है।
विटामिन B1 की कमी से होने वाले रोग :
- इस विटामिन की कमी से तन्त्रिका तन्त्र और पेशियों का कार्य बिगड़ जाता है, जिससे अंगघात अर्थात् लकवे (paralysis) तक की आशंका हो सकती है।
- हृद्पेशियों के क्षीण हो जाने से दिल की धड़कन बन्द हो सकती है।
- अपच तथा कब्ज हो सकती है।
- इन्हीं तीन लक्षणों को सामूहिक रूप से बेरी-बेरी (beri-beri) का रोग कहते हैं।
विटामिन B2 :
विटामिन B2 का रासायनिक नाम 'राइबोफ्लेविन' है ,
सन् 1935 में इस विटामिन की खोज हुई थी। अतः यह स्वास्थ्य तथा वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।
विटामिन B2 के स्रोत :
- यह पनीर, अण्डो, यीस्ट, टमाटर, हरी पत्तियों, जिगर (यकृत), मांस, दूध आदि में मिलता है।
- इसकी कमी से मुंह के कोण फट जाते हैं।
विटामिन B2 की कमी से होने वाले रोग :
- कमजोर पाचन-शक्ति,
- त्वचा व आँखों में जलन,
- सिरदर्द,
- दिमागी क्षीणता,
- रुधिरक्षीणता,
- कमजोर स्मृति तथा होठों और नासिका पर पपड़ीदार त्वचा इस विटामिन की कमी के अन्य लक्षण होते हैं।
विटामिन B6 :
विटामिन B6 का रासायनिक नाम 'पाइरिडॉक्सीन' है ,
यह ऐमीनो अम्लों के उपापचय में महत्त्वपूर्ण भाग लेने वाले एन्जाइमों का सहएन्जाइम होता है।
विटामिन B6 के स्रोत :
- यह दूध, अनाज, मांस, मछली, जिगर, यीस्ट, सब्जियों आदि में मिलता है।
विटामिन B6 की कमी से होने वाले रोग :
- रुधिरक्षीणता (anaemia),
- चर्म रोग (dermatitis),
- पेशीय ऐंठन (convulsions),
- मतली,
- पथरी (kidney stones) आदि रोग हो जाते हैं। आँत के जीवाणु भी इसका संश्लेषण करते हैं। अत: इसकी प्रायः कमी नहीं होती।
विटामिन H:-
विटामिन H का रासायनिक नाम 'बायोटिन' है
यह ग्लाइकोजन, वसीय अम्लों, ऐमीनो अम्लों तथा
पिरिमिडीन (pyrimidine) के संश्लेषण में भाग लेने वाले एन्जाइमों का सहएन्जाइम होता है।
विटामिन H के स्रोत :
यह सब्जी, फलों, गेहूँ,चॉकलेट, अण्डों, मूंगफली, मांस, यीस्ट आदि में होता है। आँत के जीवाणु भी इसका संश्लेषण करते हैं।
विटामिन H की कमी से होने वाले रोग :
- त्वचा रोग,
- बालों का झड़ना
- कमजोरी हो जाना
- भूख न लगना ।
फोलिक अम्ल समूह :-
ये रुधिराणुओं के निर्माण तथा DNA के संश्लेषण में आवश्यक होते हैं।
फोलिक अम्ल समूह के स्रोत :
ये हरी पत्तियों (पालक), सोयाबीन, यीस्ट, गुर्दो, फलियों तथा यकृत आदि में मिलते हैं।
फोलिक अम्ल समूह की कमी से होने वाले रोग :
- इनकी कमी से वृद्धि कम हो जाती है,
- रुधिरक्षीणता (anaemia) हो जाती है।
विटामिन B12 :
विटामिन B12 का रासायनिक नाम 'सायनोकोबालैमीन' है ,
यह रुधिराणुओं के निर्माण में तथा न्यूक्लिक अम्लो डी एन ए, आर एन ए के संश्लेष्ण मे भाग लेने वाले एन्जाइमों का सहएन्जाइम होता है। अतः यह वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।
विटामिन B12 के स्रोत :
यह मांस, मछली, यकृत, अण्डों, दूध, पनीर आदि में मिलता है। ऑत के जीवाणु भी इसका संश्लेषण करते हैं।
विटामिन B12 की कमी से होने वाले रोग :
इसकी कमी से तन्त्रिका तन्त्र की कार्यिकी पर प्रभाव पड़ता है।
विटामिन C :
विटामिन C का रासायनिक नाम 'ऐस्कॉर्बिक अम्ल' है ,
विटामिन C के स्रोत :
यह नींबू, सन्तरे, मुसम्मी, टमाटर, हरी मिर्च तथा अन्य हरी अनाज आदि में पाया जाता है ,
विटामिन C की कमी से होने वले रोग :
- इसकी कमी से होने वाला रोग स्कर्वी में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव घावों के न भरने का होता है। कोलेजन तन्तुओं एवं आन्तरकोशिकीय पदार्थ की कमी से घावों के भरने में महीनों लग जाते हैं।
- हडूडी एवं दाँतों की वृद्धि रुक जाना
- हड्डियों का कमजोर होना
- रुधिरक्षीणता
- रुधिर-केशिकाओं की दीवार के क्षीण हो जाने से ये फटने लगना
- शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता (immunity) और जननक्षमता (fertility) कम हो जाना
- पेशियाँ का फटना
- मसूड़ों का फूलना और दांतों का गिरना,
- मल के साथ खून का जाना
- जोड़ों में सूजन तथा तीव्र ज्वर हो जाना
वसा में घुलनशील विटामिन :-
1. विटामिन A
2. विटामिन D
3. विटामिन E
4. विटामिन K
विटामिन A :-
विटामिन A का रासायनिक नाम 'रेटिनॉल' है ,
यकृत में इसकी काफी मात्रा पायी जाती है। प्रोटीन-संश्लेषण, हड्डियों और शरीर की वृद्धि, जननक्षमता, कार्बोहाइड्रेट उपापचय आदि के लिए आवश्यक होता है।
विटामिन A के स्रोत :
गाजर विटामिन A का मुख्य स्रोत है
हम इसे दूध, मक्खन, अण्डों की जर्दी, यकृत, मछलियों के तैल आदि से भी प्राप्त कर सकते हैं।
विटामिन A की कमी से होने वाले रोग :
- इसकी कमी से रतौंधी (night blindness) हो जाती है,
- त्वचा, कॉर्निया आदि में कोशिकाएँ सूखने लगती हैं। और शल्कीभवन हो जाता है।
- कॉर्निया के शल्कीभवन को जीरोफ्थैल्मिया रोग कहते हैं।
- नर सदस्यों में जननक्षमता कम हो जाती है और गुर्दो में पथरी पड़ जाती है।
- इस विटामिन की कमी से शिशुओं में वृद्धि रुक जाती है,
- ग्रन्थियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं,
- कमजोर एपिथीलियमी स्तरों पर जीवाणुओं आदि का संक्रमण (infection) हो जाता है। इसीलिए, इस विटामिन को, "संक्रमणरोधी विटामिन” भी कहते हैं।
विटामिन D :-
विटामिन D आहारनाल में भोजन से फॉस्फोरस तथा कैल्सियम के अवशोषण और अस्थिनिर्माण के लिए आवश्यक होते हैं। अतः ये दाँतों एवं हड्डियों के स्वास्थ्य और विकास में महत्त्वपूर्ण होते हैं।
विटामिन D का रासायनिक नाम 'कैल्सीफेराॅल' है ,
विटामिन D के स्रोत :
- सबसे अधिक विटामिन D सूर्य की किरणों मे पाया जाता है इसलिए इसे "धूप का विटामिन (Sunshine Vitamin)" कहते है।
- मक्खन,यकृत, वृक्कों, अण्डों की जर्दी, मछली के तैल आदि से भी यह मिलता है।
विटामिन D की कमी से होने वाले रोग :
- इसकी कमी से बच्चों में सूखा रोग (rickets) हो जाता है, जिसमें हड्डियाँ क्षीण, लचीली और टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। वयस्कों में भी इसकी कमी से हड्डियाँ क्षीण और लचीली हो जाती हैं। इस दशा को ओस्टिओमैलैसिया (Osteomalacia) कहते हैं।
विटामिन E :
विटामिन E का रासायनिक नाम 'टोकोफेरॉल' है ,
ये विटामिन चूहों, खरगोश, मुर्गों आदि में ये जननक्षमता के लिए आवश्यक पाए गए हैं। अतः इन्हें वाँझपन-रोधी (artisterility) विटामिन भी कहा गया है।
विटामिन E के स्रोत :
ये तैल, गेहूँ, सोयाबीन और अण्डों की जर्दी में मिलते हैं।
विटामिन E की कमी से होने वाले रोग :
इनकी कमी से जननांग तथा कंकाल पेशियाँ कमजोर हो जाती हैं।
विटामिन K :-
विटामिन K का रासायनिक नाम 'नैफ्थोक्विनोन 'है,
प्रोथ्राम्बिन नामक पदार्थ के संश्लेषण के लिए यह यकृत में आवश्यक होता है। प्रोथ्राम्बिन चोट पर रुधिर-थक्के के जमने के लिए आवश्यक होता है। इसीलिए, इस विटामिन को रुधिरस्राव-रोधी पदार्थ कहते हैं।
विटामिन K के स्रोत :
- हरी पत्तियों, टमाटर, गोभी, सोयाबीन, यकृत, अण्डों की जर्दी तथा पनीर में यह काफी मात्रा में पाया जाता है।
विटामिन K की कमी से होने वाले रोग :
- रुधिर का थक्का न जमना
- इसकी कमी वाले व्यक्तियों का ऑपरेशन आसानी से नहीं किया जा सकता, क्योंकि अधिक रुधिर बह जाने का डर बना रहता है।
निष्कर्ष:
सभी विटामिन्स का संतुलन हमारे शरीर के लिए बेहद जरूरी होता है। यदि आपके शरीर में इनमें से किसी भी विटामिन की कमी है, तो उसे समय रहते पहचानकर प्राकृतिक स्रोतों से पूरा कर सकते हैं या डॉक्टर की सलाह लेकर सप्लीमेंट ले सकते हैं। संतुलित आहार, धूप, और सही दिनचर्या अपनाकर आप लंबे समय तक स्वस्थ रह सकते हैं।
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