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अमीबा क्या है ? Amoeba in hindi- के सामान्य लक्षण, पोषण, श्वसन, उत्सर्जन, जनन, पाचन कैसे होता है

 अमीबा (Amoeba) का वर्गीकरण (classification) : 

प्रॉटिस्टा जगत  (Protista kingdom)

       संघ             -       प्रोटोजोआ

       उपसंघ         -      सार्कोमैस्टिगोफोरा 

       वर्ग              -      सार्कोडिना

       उपवर्ग          -      राइजोपोडा

       गण              -     अमीबाइडा

       श्रेणी             -     अमीबा  

अमीबा एक एककोशिकीय प्रोटोजोआ संघ का प्राणी है। सूक्ष्मदर्शी से देखने पर यह रंगहीन पारदशी तथा जैली के समान व अनियन्त्रित आकार का दिखाई देता है। इसका आकार लगातार बदलता रहता है। अमीबा प्रोटियस का व्यास 0.6 मिमी तथा अन्य अमीबा 0.2-0.5 मिमी व्यास के होते हैं।


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अमीबा की खोज किसने की:-

अमीबा की खोज 1755 ई० में रसेल वान रोसेनहाफ ने की। उन्होंने इसका नाम लघु प्रोटियस रखा।

अमीबा की संरचना:-

अमीबा की संरचना में जीवद्रव्य से बने उभार निरन्तर बनते तथा समाप्त होते रहते हैं। इन्हें पादाभ या स्यूडोपोडिया (Pseudopodia) कहते हैं। अमीबा की आकृति में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं क्योंकि अमीबा की संरचना में नए पादाभ बनने के बाद पहले से बने पादाभ समाप्त होने लगते हैं। पादाभ चौड़े व अँगुली के समान सिरे पर गोल होते हैं। ये पादाभ लोबोपोडिया (Lobopodia) कहलाते हैं। 

जिस सिरे पर पादाभ बनते हैं उसे अग्रसिरा तथा जिस सिरे पर ये समाप्त होते हैं उसे पश्च सिरा कहते हैं। पश्च सिरे पर विलीन होते हुए पादाभ शिकनों (Wrinkles) के रूप में दिखाई देते हैं। इस सिरे को यूरोइड (Uroid) कहते हैं। पादाभ चलन एवं भोजन पकड़ने के अंग हैं।अमीबा के शरीर की संरचना को तीन भागों में विभाजित किया गया है।

अमीबा के सामान्य लक्षण:-

अमीबा में गमन कैसे होता है ?

आमीबा में अँगुली के आकार के कूटपादों द्वारा गमन होता है। इन पादों की सहायता के किसी भी दिशा में चल सकते है। इनका आकार एवं परिमाण सदैव बदलता रहता है। जब अमीबा में नये कूटपाद बनते हैं तो पुराने कूटपाद समाप्त हो जाते हैं तथा शरीर का समस्त जीवद्रव्य धीरे-धीरे बने कूटपादों में आ जाता है। इस प्रकार अमीबा में गमन कूटपादों द्वारा होता रहता है। इनकी यह गति अभिलाभ गति कहलाती है। यह लगभग 0.2-0.3 प्रति मिनट होती है।

अमीबा में पोषण कैसे होता है ?

यह पूर्ण भोजी अर्थात् जन्तु समभोजी (Holozoic or zotrophic) एवं सर्वाहारी होता है। यह सभी प्रकार के ठोस भीजन कणों को ग्रहण कर लेता है। सामान्यत: जीवाणू, डाइट्म, अन्य प्रोटोजोआ, शैवाल आदि सूक्ष्म जलीय जीव इनका भोजन हैं।

अमीबा में प्रजनन कैसे होता है ?

इसमें प्रजनन अलैंगिक तथा द्वि-विखण्डन द्वारा होता है। विखण्डन (Fission)-यह अनेक जीवाणुओं में प्रजनन की प्रक्रिया है। इस क्रिया द्वारा एक परिपक्व संगति कोशिका में विभाजन होता है और इनमें से प्रत्येक एक वयस्क जीव में वृद्धि करता है। विखण्डन दो प्रकार से हो सकता है-


(i) द्वि-विखण्डन-इमसें पहले केन्द्रीय विभाजन होता है। इसके बाद कोशिका में एक संकीर्णन प्रकट हो जाता है जिससे कोशिका द्रव्य दो भागों में विभक्त होकर दो संतति जीव बना लेता है; जैसे-अमीबा, पैरामीशियम आदि।


(ii) बहु-विखण्डन-जब एक ही केन्द्रक कई बार विभाजित होकर बहुत से केन्द्रक बनाता है और प्रत्येक केन्द्रक एक नये जीव को जन्म देता है तो इस प्रकार के विखण्डन को बहु-विखण्डन कहते हैं; जैसे-प्लाज्मोडियम या मलेरिया परजीवी

अमीबा में द्विखण्डन विधि (Binary Fission in Amoeba)

यह प्रक्रिया अनुकूल परिस्थिति में होती है । अनुकूल परिस्थिति में जनक जीवाणु कोशा आकार में वृद्धि करती है तथा केन्द्रक लम्बा हो जाता है। जीव द्रव्य के मध्य में अनुप्रस्थ भित्ति के बन जाने एवं संकीर्णन के कारण जीव द्रव्य तथा केन्द्रक दो भागों में विभाजित हो जाता है। ये दोनों भाग अलग होकर दो कोशिकाओं का निर्माण कर लेते हैं।

इसी प्रकार कोशा आकार में बढ़ती जाती है तथा फिर इसमें जनन शुरू हो जाता है। इस प्रकार उत्पन्न दो संतति अमीबा भोजन ग्रहण करके अपने पूर्ण आकार में विकसित होते हैं और पुन: अमीबा उत्पन्न करते हैं ।

बहुखण्डन (Multiple Fission)- 

अमीबा में बहुविखण्डन/विभाजन प्रतिकूल परिस्थिति में होता है । प्रतिकूल वातावरण से बचने के लिए यह अपने चारों ओर तीन स्तरीय सुरक्षाकवच/सुरक्षात्मक आवरण स्रावित करता है, जिसे पुटी (Cyst) कहते हैं तथा क्रिया को पुटीभवन (Encysment) कहते हैं।


पुटी के अन्दर अमीबा का केन्द्रक कई केन्द्रिकों में विभाजित हो जाता है । ये विभाजित केन्द्रक अमीबुली (Amoebulae) या स्यूडोपोडियोस्पोर कहलाते हैं अनुकूल परिस्थिति होने पर पुटी में घुल जाती है और संतति अमीबा स्वतन्त्र हो जाते हैं ।


जीवकला (Plasmalemma)-

अमीबा के शरीर परकोशिका के समान पतली, लचीली तथा अर्धपारगम्य जीवकला होती है जिसकी मोटाई 1-2म्यू  होती है। जीवकला पर म्यूकोप्रोटीन (Mucoprotein) के सूक्ष्मसंकुरों (Microvilli) के रूप में असंख्य उभार होते हैं। इन्हीं उभारों के कारण अमीबा आधार से चिपका रहता है। जीवकला लचीली होती है। जिसके कारण इनमें पादाभ बनते हैं जो टूट-फूट की मरम्मत में भी सहायक होते हैं।

कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)-

कोशिकाद्रव्य जीवकला से घिरा हुआ अन्दर की ओर रहता है। इसमें शारीरिक एवं जैविक क्रियाएँ होती रहती हैं। यह एक कोलॉयडी पदार्थ है। कोशिका द्रव्य को दो भागों में विभाजित किया जाता है।

(i) बाह्य द्रव्य या एक्टोप्लाज्मा (Ectoplasm)-

एक्टोप्लाज्मा कोशिकाद्रव्य के नीचे वाला स्तर होता है। यह अल्पपारदर्शी, गाढ़ा तथा दानारहित होता है। ये नये बनने वाले कूटपादों के सिरों पर मोटी परत का निर्माण करता है। इस परत को काचाभ टोपी (Hyaline cap) कहते हैं।

(ii) अन्तःद्रव्य या एण्डोप्लाज्मा (Endoplasm or Endosaric) - 

अन्त द्रव्य कणिकामय तथा तरल जीवद्रव्य का केन्द्रीय पिण्ड होता हैं । इसे प्लाज्मासॉल भी कहते हैं।

इसमें तरल के समान बहने की गतियाँ होती हैं। इन गतियों को चक्रगति (Cyclosis ) कहते हैं।

कोशिका द्रव्य में निलम्बित रचनाएँ

सूक्ष्मदर्शी से, देखने पर अमीबा के कोशिका द्रव्य में केन्द्रक तथा तीन प्रकार की रिक्तिकाएँ/वेक्योल्स (Vacuoles) दिखाई देती हैं।

1. कुन्चनशील रिक्तिका (Contractile Vacuole) - 

यह अमीबा की सबसे अन्तर्निहित संरचना है जो एक्टोप्लाज्म में शरीर के अस्थाई पिछले भाग में स्वच्छ जलीय तरल के गोल बुलबुले के रूप में दिखाई देती है। इस रिक्तिका के चारों ओर जीवद्रव्यता के समान लचीली एवं महीन संघनन झिल्ली का आवरण होता है । वह रिक्तिका परासरण नियन्त्रण (Osmo-regulation) का कार्य करती है। कोशिकाद्रव्य में माइटोकॉन्ड्रिया का जमाव रहता है।

2. खाद्य रिक्तिकाएँ (Food Vacuoles) - 

ये अकुन्चनशील धानियाँ होती हैं जो पूरे एण्डोप्लाज्मा में घूमती रहती हैं। ये अस्थाई रचनाएँ हैं। इनकी. आकृति भोजन कणों की संख्या तथा आकार के अनुसार भिन्न भिन्न होती हैं । खाद्य धानी भोजन अन्तर्ग्रहण के कारण बनती हैं और भोजन का पाचन हो जाने के बाद बहि:क्षेपण (Egeslion) क्रिया द्वारा फटकर समाप्त हो जाती है।

3. जल रिक्तिकाएँ (Water Vacuoles) - 

वे एण्डोप्लाज्मा में पाई जाने वाली जल से भरी छोटी-छोटी रंगहीन व पारदर्शक अकुन्चनशील जलधानियाँ हैं । अमीबा के एण्डोप्लाज्मा के विभिन्न अंगक (Orge Nells)इलेक्ट्रॉनिक सूक्ष्मदर्शी से देखने पर अमीबा के एण्डोप्लाज्या में निम्न अंगक दिखाई पड़ते हैं-

1. अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (endoplasmic Reticulum)- 

कोशिका द्रव्य में सूक्ष्म नलिकाओं का एक विस्तृत जाल सा होता है जिसे अन्तःप्रद्रव्यी जालिका कहते हैं। नलिकाएँ दोहरी झिल्लियों से घिरी होती हैं। इनका विस्तार केन्द्रक कला से प्लाज्मा झिल्ली तक होता है। जिन अन्त:प्रद्रव्यी जालिकाओं की बाहरी सतह पर राइबोसोम पाये जाते हैं।

उन्हें रुक्ष अन्त:प्रद्रव्यी जालिका कहते हैं और जिनमें राइबोसोम का अभाव होता है उन्हें चिकनी अन्तःप्रद्रव्यी जालिका कहते हैं।

2. माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) - 

यह कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) में पाई जाने वाली गोलाकार या शल्काकार रचनाएँ होती हैं । जीवाणु तथा हरे शैवाल में यहपाये जाते हैं। प्रत्येक माइटोकोण्ड्रिया के चारों ओर प्रोटीन एवं वसा की बनी हुई दोहरी झिल्ली होती है। झिल्ली के भीतर सतह से अनेकों अंगुली जैसी रचनाएँ पायी जाती हैं। माइटोकॉण्ड्रिया की गुहा में एक अर्द्धतरल पदार्थ भरा रहता है जो मेट्रिक्स (Matrix) कहलाता है। 


इसमें मुख्य रूप में विकर (Enzymes), न्यूक्लिक अम्ल तथा राइबोसोम होते हैं। इसे कोशिका का ऊर्जा घर या विकृत ग्रह ( Power House) कहा जाता है।

3. राइबोसोम (Ribosome) - 

यह अत्यन्त सूक्ष्म कण होते हैं। यह कोशिका दव्य में तैरते रहते हैं या माइटोकॉण्ड्रिया क्लोरोप्लास्ट या केन्द्रक से चिपके रहते हैं। ये आकार में प्रायः गोल होते हैं तथा इनका निर्माण केन्द्रक में होता है । कई राइबोसोम मिलकर पॉलीसोम्स की रचना बनाते हैं ।

4. गॉल्जीकाय (Gologibody)- 

यह विभिन्न प्रकार की बनी हुई चपटी एवं कम मुड़ी हुई थैलियों (Cisternae) का समूह होता है। प्रत्येक समूह में 4 से 10 तक थैलियाँ होती हैं। यह कहीं-कहीं एण्डोप्लाज्मिक रेटुकुलम से जुड़ी रहती हैं । थैलियों के किनारे के आस-पास गोलाकार छोटी थैलियाँ (Vesicles) होती हैं।

5. रिक्तिकाएँ (Vacuoles)- 

यह तरह पदार्थ से भरी हुई रचनाएँ होती हैं। प्रत्येक रिक्तिका के चारों ओर एक झिल्ली होती है जिसे रिक्तिका कला या टोनोप्लास्ट (Tonoplast) कहते हैं। रिक्तिका के अन्दर भरे पदार्थ को रिक्तिका रस कहते हैं। पादप कोशिका में प्राय: एक बड़ी रिक्तिका पायी जाती है।

6. केन्द्रक (Nucleus)-

एण्डोप्लाज्मा के केन्द्रीय भाग में लगभग वृत्ताकार, उभयो्तल या उत्तल, तश्तरीनुमा, केन्द्रक होता है। इसके चारों ओर अन्य जन्तु कोशिकाओं के समान और छिद्रयुक्त आवरण होता है। इसके केन्द्रक द्रव्य में कई केन्द्रिकाएँ (Nucleoli) तथा लगभग 500 क्रोमोटिन के कण होते हैं। उन्हें क्रोमीडिया (Chromidia) कहते हैं। अमीबा में उपापचय, जनन, वंशागति आदि क्रियाएँ केन्द्रक में ही होती हैं । एण्डोप्लाज्म में कार्बोनिल डाइयूरिया उत्सर्जी पदार्थ के रवे पाये जाते हैं। इन्हें इनकी आकृति के अनुसार बाइयूरेट्स, ट्राइयूरेट्स आदि कहते हैं।

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