कार्बोहाइड्रेट की परिभाषा :
पदार्थ में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा लगभग एक प्रतिशत होती है। लेकिन सबसे अधिक कार्बोहाइड्रेट के अणु पृथ्वी पर उपस्थित कार्बनिक जैविक अणुओं में ही पाए जाते हैं।
क्लोरोफिल या पर्णहरिम युक्त शैवालों तथा जीवाणुओं एवं हरे पेड़ पौधे, वनस्पतियों की कोशिकाएं, प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के द्वारा ,CO2 एवं H2O से सारे जीवों के लिए कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण करती है। ये कोशिकाएँ एक वर्ष में लगभग दस करोड़ मीटरी टन कार्बन डाइ ऑक्साइड और जल का उपयोग कर लेती है।
एक सूखे हुए पौधे का लगभग अस्सी प्रतिशत भाग सेलुलोस से बना होता है।
कार्बोहाइड्रेट के स्रोत :-
कार्बोहाइड्रेट की कमी से होने वाले रोग :-
कार्बोहाइड्रेट की अधिकता से होने वाले रोग :-
कार्बोहाइड्रेट के कार्य तथा महत्त्व :-
- शरीर को ऊर्जा प्रदान करना
- पौधों तथा जंतुओं में भोजन को स्टार्च तथा ग्लाइकोजन के रूप में संगृहीत करना
- शरीर को शक्ति तथा गर्मी प्रदान करना
- शरीर में वसा के उपयोग के लिए आवश्यक
- आर एन ए तथा डी एन ए का घटक
कार्बोहाइड्रेट का संयोजन :-
कार्बोहाइड्रेट 1 : 2 : 1 के अनुपात में C (कार्बन),H (हाइड्रोजन) तथा O (ऑक्सीजन) के अणुओं से मिलकर बने होते हैं। अतः इनका सामान्य मूलानुपाती सूत्र CnH2nOn होता है।
इनमें हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का अनुपात जल के समान होता है। ये कार्बनिक यौगिक H2O से मिलकर बनते हैं। कुछ कार्बोहाइड्रेट्स में फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और सल्फर के परमाणु भी उपस्थित रहते हैं।
कार्बोहाइड्रेट की प्रकार :-
कार्बोहाइड्रेट को "सैकेराइड्स" भी कहते हैं। स्वाद में इसके अणु मीठे होते हैं । इनकी तीन प्रमुख श्रेणियां हैं - 1. मोनोसैकेराइड्स, 2. ओलिगोसैकेराइड्स तथा 3.पोलीसैकैराइड्स ।
मोनोसैकेराइड्स:-
ये जल में बहुत ज्यादा घुलनशील, परंतु क्लोरोफॉर्म, बेंजीन,केेेरोसिन, पेट्रोलियम, एल्कोहॉल, ईथर आदि मे घुलनशील नहीं होते हैं।
ओलिगोसैकेराइड्स:-
सामान्यतः हैक्सोज मोनो सैकेराइड्स, ( फ्रक्टोस, ग्लूकोस, मैनोस तथा गैलेक्टोज) तथा पेंटोस मोनोसैकेराइड्स, जाइलोस, राइबोस) बड़े कार्बोहाइड्रेट्स की एकलकी इकाइयों का काम करते हैं।
इनके रेखीय श्रंखला में जोड़ने वाले बहुलीकरण से बड़े कार्बोहाइड्रेट बनते हैं। जिन्हें संयुक्त कार्बोहाइड्रेट्स कहा जाता है। इन कार्बोहाइड्रेट की दो श्रेणियां हैं 1. ओलिगोसैकेराइड्स 2. पॉलीसैकेराइड्स।
ओलिगोसैकेराइड्स अणु केवल 2 से10 मोनोसैकेराइड इकाइयों के बहुलक होते हैं। अतः ये बहुत छोटे ज्यादातर मीठे और जल में घुलनशील अणु होते हैं। मोनोसैकेराड इकाइयों की संख्या के अनुसार ही इन्हें डाइसैकेराइड्स,ट्राईसैकेराइड्स, टेट्रासैकेराइड्स आदि कहते हैं।
पॉलीसैकेराइड्स:-
पृथ्वी पर ज्यादा से ज्यादा कार्बोहाइड्रेट्स पॉलीसैकेराइड्स के ही रूप में ही पाए जाते हैं। इन्हें ग्लाइकन्स भी कहते हैं।
ये न तो जल में घुलनशील होते हैं, और ना ही मीठेे होते हैंं।एकलकी इकाइयोंं के रूप में पॉलीसैकेराइड्स के सबसे अधिक D ग्लूकोस के ही अणु पाए जाते हैं।
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