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केंचुआ किसे कहते हैं ? earthworm in hindi- केंचुए की संरचना, लक्षण, वर्गीकरण

फेरेटिमा पोस्थुमा (भारतीय केंचुआ) का वर्गीकरण :-

Pheretima posthuma (Indian earthworm)

संघ       -      ऐनेलिडा

वर्ग        -     ओलिगोकीटा

गण       -      हैप्लोटैक्सिडा

श्रेणी     -      फेरेटिमा

प्रभाग    -     यूसीलोमैटा

केंचुआ किसे कहते हैं ? earthworm in hindi- केंचुए की संरचना, लक्षण, वर्गीकरण, श्वसन, उत्सर्जन तंत्र बताइए।

प्राकृतिक वास एवं स्वभाव

बरसात के दिनों में रात या दिन के समय पृथ्वी पर छोटे-छोटे सर्पों की तरह केंचुआ दिखाई देते हैं।

जाड़े एवं गर्मी में कम एवं अधिक ताप से बचने के लिए यह नदियों, तालाबों, झीलों आदि के निकट पाए जाते हैं। 

खेतों, बाग-बगीचा आदि की गीली एवं नम मिट्टी में सुरंग या बिल बनाकर कुछ सेंटीमीटर से 45 सेंटीमीटर तक नीचे धंसे रहते हैं। लेकिन गर्मी के समय 2 से 3 मीटर तक अंदर चले जाते हैं। 

बरसात में ऊपर की तरफ निकल आते हैं। मैथुन तथा भोजन के लिए रात में बाहर निकलते हैं। इसलिए इनको "मिट्टी के क्रमि" भी कहा जाता है। 

यह रात्रिचर और शीत रुधिर होते हैं। इनकी लगभग 1800 जातियां ज्ञात हैं। लेकिन भारत में इनकी लगभग 40 जातियां पाई जाती हैं। 

फेरेटिमा श्रेणी की लगभग 300 ज्ञात जातियों में से भारत में 13 जातियां मिलती हैं। इनमें फे० पोस्थुमा सबसे अधिक मिलता है।

आकृति माप एवं रंग

फे ० पोस्थुमा लगभग 0.3 से 0.5 सेंटीमीटर मोटा एवं 15 से 20 सेंटीमीटर लंबा नालवत शरीर लसलसा एवं सिर की तरफ कुछ पतला होता है। 

इसकी त्वचा पोरफाइरिन नामक रंगा पदार्थ के कारण भूरी होती है। लेकिन पृष्ठ त्वचा का रंग अधिक गहरा होता है। पोरफाइरिन तीव्र प्रकाश के दुष्प्रभाव से त्वचा को बचाता है।

बाह्य रचना (External Morphology)

मध्यपृष्ठ रेखा पर फैली एवं कुछ गहरे रंग की गहरी धारी से शरीर का पृष्ठतल पहचाना जाता है। 

त्वचा के नीचे स्थित मोटी पृष्ठ रुधिरवाहिनी के कारण धारी अर्ध पारदर्शक दिखाई देती है।

शरीर के अधरतल को जननछिद्रों एवं जनन अंकुरों की उपस्थिति से पहचानते हैं।

खण्डीभवन (Segmentation) : - 

केंचुए का पूरा शरीर, वलयाकार या वृत्ताकार अन्तराखण्डीय खाँचों द्वारा, लगभग 100-120 छोटे-छोटे मुद्राकार समखण्डों  में बँटा होता है। 

शरीर के अन्दर भी अन्तराखण्डीय खाँचों की सीध में, अन्तराखण्डीय पट्टियाँ होती हैं। ये देहगुहा को खण्डीय कक्षों में बाँटती हैं। कई अंग तन्त्र भी समखण्डीय होते हैं।

सीटी (Setae or chaetae) : 

प्रत्येक परिपक्व केंचुए में प्रथम,अन्तिम तथा 14वें, 15वें एवं 16वें खण्डों के अतिरिक्त, प्रत्येक खण्ड की मध्य रेखा पर हल्की-सी धारी इसलिए दिखाई देती हैं। कि इस पर त्वचा में 80 से 120, काइटिन (chitin) की बनी, काँटे-जैसी हल्की पीली-सी, छोटी-छोटी "S" के आकार की सीटी पंक्तिबद्ध रहती हैं। 

सीटी का कुछ भाग त्वचा में धंसा तथा कुछ सतह पर बाहर निकला और पीछे की ओर झुका होता है। ये गमन में सहायता प्रदान करती हैं।

क्लाइटेलम (Clitellum or Cingulum) : 

यह प्रत्येक परिपक्व (mature) केंचुए में, शरीर के अग्र छोर से लगभग 2 सेमी पीछे, 14वें, 15वें एवं 16वें खण्डों के चारों ओर ग्रन्थिल कोशिकाओं की एक चिकनी एवं मोटी मुद्राकार पेटी-जैसी होती है। 

यह प्रसवन काल के समय कोकून (cocoons) बनाती है जिनमें अण्डे दिए जाते हैं। इस प्रकार, ये तीन खण्ड क्लाइटेलर भाग बनाते हैं। इनके आगे पूर्व-क्लाइटेलर तथा पीछे पश्चक्लाइटेलर भाग होते हैं।

पेरिस्टोमियम एवं प्रॉस्टोमियम (Peristomium and Prostomium): 

केंचुए का शीर्ष स्पष्ट नहीं होता है। शरीर के पहले खण्ड को पेरिस्टोमियम अथवा परितुण्ड कहते हैं। इसके छोर पर, अधरतल की तरफ,मुखद्वार होता है एवं पृष्ठतल की ओर एक छोटा-सा छज्जेनुमा मांसल पिण्डक जिसे मुखाग्र या प्रॉस्टोमियम कहते हैं। प्रॉस्टोमियम मुखद्वार को ढाँकता हुआ आगे निकला रहता है। स्पष्ट है कि यह शरीर का खण्ड नहीं होता है।

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