ब्रह्म समाज की स्थापना :
ब्रह्म समाज की स्थापना "राजा राममोहन राय ने 20 अगस्त 1828 ई० में कोलकाता" में की थी।
बंगाली समाचार पत्र "संवाद कौमुदी" की स्थापना सन् 1819 ई० की जिसे "भारतीय समाचार पत्रों का जनक" कहा जाता है।
ब्रह्म समाज केेे प्रमुख सिद्धांत-
- ईश्वर एक है वह सर्वव्यापी एवं निराकार है।
- उसकी आराधना करने के लिए कर्मकांडों, मूर्ति पूजा और बाह्य आडम्बरों की आवश्यकता नहीं है।
- उसी की पूजा करने का अधिकार सभी को है, सच्चे हृदय से उसकी पूजा एवं प्रार्थना करने से वह प्रसन्न होता है।
- आत्मा अजर और अमर हैं एवं शरीर नाशवान है।
- मनुष्य को कट्टरता एवं अंधविश्वास को त्याग कर मानवतावादी सार्वभौमिक सिद्धांतों को स्वीकार करना चाहिए।
- ईश्वर कर्म के अनुसार ही मनुष्य को फल देता है, मानव को अपने पापों का प्रायश्चित कर लेना चाहिए तभी उसे मोक्ष मिलेगा।
- ब्रह्म समाज सत्य और प्रेम में विश्वास करता है और छुआछूत तथा जातिवाद का विरोधी है।
- हमें प्राणियों के प्रति दया रखनी चाहिए। यही हमारा "परम धर्म" है।
- मनुष्य को पाप का त्याग कर देना चाहिए। मोक्ष पाने का एकमात्र साधन यही है।
ब्रह्म समाज के कार्य-
- उन्होंने भारतीय समाज व धर्म में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने का पूरा प्रयास किया।
- तर्क के द्वारा सभी धार्मिक अंधविश्वासों एवं रूढ़ियों का खंडन किया था।
- उन्होंने बाल विवाह, जाति प्रथा, बहु विवाह, सती प्रथा, छुआछूत आदि कुरीतियों का भरपूर विरोध किया एवं विधवा विवाह को प्रोत्साहन किया।
- इन्होंने ही अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन करके पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली के आधार पर भारत का आधुनिकरण किया था।
- उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता पर बल दिया और विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बल देकर प्रेस की एक नई दिशा प्रदान की।
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