आर्य समाज की स्थापना :
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सन 1875 ई० में की थी।स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय
इनका जन्म सन 1824 ई० में गुजरात राज्य के टंकारा गांव में एक ब्राह्मण कुल में हुआ था।
इनके पिताजी ने स्वामी जी को न्याय, दर्शन और वैदिक आदि की शिक्षा दी थी।
कुछ समय के बाद में स्वामी जी ने अपना गृह का त्याग कर दिया। 15 वर्ष तक वे लगातार कई स्थानों पर घूमते रहे।
1807 ई० में वे मथुरा पहुंचे। वहां पर उन्होंने वैदिक धर्म के प्रति स्वामी विरजानंद जी से अगाध श्रद्धा प्राप्ति की।
भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास,असमानता, पाखंड,आडम्बर को जड़ से समाप्त करने का प्रण किया।
स्वामी दयानंद का आदेश था कि अपने देश भारत को "सामाजिक धार्मिक राष्ट्रीय" रूप से एक कर दिया जाए।
धर्म के क्षेत्र में उन्होंने श्राद्ध,अवतारवाद, बहुदेववाद, मूर्ति पूजा, मंत्र जप और पशुबली को कभी भी स्वीकार नही किया।
उनके अनुसार मानव "भाग्य का खिलौना" ही नहीं अपितु अपने भाग्य का भी निर्माता है।
कर्म फल से कोई भी व्यक्ति नहीं बच सकता।
प्रत्येक मनुष्य को संसार की कर्मभूमि में अच्छे कार्य करते हुए मोक्ष की ओर जाना चाहिए ।
स्वामी जी वास्तव में भविष्य के एक अच्छे दृष्टा थे।
उन्होंने समानता की उस भावना को हिन्दू समाज में जागृत किया। जो संविधान में वर्णित है।
उन्होंने अपने सभी विचार अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "सत्यार्थ प्रकाश" में वर्णित किए।
इनहोंने ही वेदों की ओर लौटो का नारा दिया था।
30 अक्टूबर 1883 ई० को छोड़कर चले गए।
आर्य समाज के सिद्धांत :
★ सभी सत्य विद्या एवं पदार्थ विद्या से ही जाने जाते हैं। उन सब का आदि कारण "परमात्मा" है।
★ वेद ही परम ज्ञान व सत्य के स्रोत हैं, अतः इनको सुनना सुनाना और पढ़ना पढ़ाना आर्य का परम धर्म है।
★ असत्य को त्यागने के लिए सत्य को ग्रहण करने के लिए सदैव उद्धत रहना चाहिए।
★ प्रत्येक कार्य धर्म के अनुसार अर्थात सत्य व असत्य का विचार करके ही करना चाहिए।
★ सबके साथ प्रेमपूर्वक धर्मानुसार आचरण करना चाहिए।
★ प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट नहीं रहना चाहिए। अपितु सब की उन्नति में ही अपनी उन्नति को समझनी चाहिए।
★ संसार की सामाजिक उन्नति और शारीरिक आत्मिक के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए।
आर्य समाज के कार्य :
★ आर्य समाज ने स्वस्थ समाज की स्थापना के लिए बहुत से समाज सुधार के कार्यों में संपादन किया।
★उन्होंने इस समाज में जाति प्रथा का विरोध किया और पुरुषों के समान स्त्रियों को अधिकार दिए जाने की वकालत की।
★ उनके ऐसे विचारों के कारण ही उनके समर्थकों में स्वदेशी और देशभक्ति की भावना कूट-कूट के भरी हुई थी।
★ आर्य समाज के द्वारा 1908 ई० में "दलित वर्ग के उत्थान के लिए" आंदोलन चलाया गया।
★ भारत में इन्होंने जगह-जगह दयानंद एंग्लो वैदिक डीएवी कॉलेजों की स्थापना की।
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